Popular Posts

Sunday 16 December 2018

इक ख़ामोश लम्हा दो

कि इक ख़ामोश लम्हा दो
ठहर कर सोचना है|
थक जाऊ सफर तय कर यहीं ?
या मुसलसल दौड़ना है ?

कि इक ख़ामोश लम्हा दो
ठहर कर सोचना है|

करू परवाज़ की परवाह ?
रहूँ माज़ी में बेपरवाह ?
ज़रूरी है ये तय करना 
किस सम्त जाना  है

कि इक ख़ामोश लम्हा दो
ठहर कर सोचना है|

देखू रौशन चराग़ ,या
करू इक लौ मै अहतराक़ ?
तपिश ग़ैरत की लेनी है
या सर्द रहना है 

कि इक ख़ामोश लम्हा दो
ठहर कर सोचना है|

रो कर युहीं कबतक सहेंगे 
ग़म ए फिराक़ ए महबूबी 
रखकर किसी कोने में ग़म को 
कू ए यार चलना है 

कि इक ख़ामोश लम्हा दो
ठहर कर सोचना है|
Ⓒarshad ali

परवाज़= Udaan, Flight
माज़ी = Past
सम्त = Direction
अहतराक़ = To inflame
ग़म ए फिराक़ ए महबूबी  = Grief of separation from lover
कू ए यार = The street where the beloved lives

No comments:

Post a Comment

2 Liners

दिल में क़रार रहे न रहे "अरशद " लबों पे तबस्सुम बरक़रार रखिए || तबस्सुम= Smile तलब होती है हमें जब भी मुस्कुराने की तेरे तबस्...