कि इक ख़ामोश लम्हा दो
ठहर कर सोचना है|
थक जाऊ सफर तय कर यहीं ?
या मुसलसल दौड़ना है ?
कि इक ख़ामोश लम्हा दो
ठहर कर सोचना है|
करू परवाज़ की परवाह ?
रहूँ माज़ी में बेपरवाह ?
ज़रूरी है ये तय करना
किस सम्त जाना है
कि इक ख़ामोश लम्हा दो
ठहर कर सोचना है|
देखू रौशन चराग़ ,या
करू इक लौ मै अहतराक़ ?
तपिश ग़ैरत की लेनी है
या सर्द रहना है
कि इक ख़ामोश लम्हा दो
ठहर कर सोचना है|
रो कर युहीं कबतक सहेंगे
ग़म ए फिराक़ ए महबूबी
रखकर किसी कोने में ग़म को
कू ए यार चलना है
कि इक ख़ामोश लम्हा दो
ठहर कर सोचना है|
Ⓒarshad ali
परवाज़= Udaan, Flight
माज़ी = Past
सम्त = Direction
अहतराक़ = To inflame
ग़म ए फिराक़ ए महबूबी = Grief of separation from lover
कू ए यार = The street where the beloved lives
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