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Sunday 3 September 2017

सरे राह.....

सरे राह मोहब्बत का न यु इज़हार कीजिये
ठहरिये, सोचिये, थोड़ा इंतेज़ार कीजिये,

चलन है चाहत के नाम पर रहजनी का
रखिये जरा सब्र ना खुद को बेक़रार कीजिये,

कहने को तो हर दूसरा शख़्स है रांझा यहाँ
है हीर की कमी बहुत, खुद को खबरदार कीजिये,

हो उसूलो पे मोहब्बत तो बन जाये दास्ताँ
यु गिरा के ज़मीर न इश्क़ को शर्मसार कीजिये,

चमन का हर फूल होता नही खराब "अरशद"
हुज़ूर इस शहर से मत खुद को बेज़ार कीजिये|

©arshad ali

Saturday 2 September 2017

अतीत का क़ैदी

क्यो बन कैदी अतीत का, बैठा रे इंसान
जैसे रोये मुसाफिर कोई, लुटने पर सामान
क्या-क्या खो रहा इस चक्कर में
है सब से अनजान
क्यो बन कैदी अतीत का, बैठा रे इंसान

क्या रोना उसकी खातिर
जिसको कर सकते फिर हासिल
चल उठ फिर शुरुआत कर
बांध रस्ते का सामान
क्यो बन कैदी अतीत का, बैठा रे इंसान

कब तक शाख पे बैठेगा तू, बनकर पंछी बेचारा
बना तू अपने रस्ते खुद ही, जैसे किसी नदी की धारा
जान ले सबकुछ है तेरे अंदर
बस पैदा कर तूफान
क्यो बन कैदी अतीत का, बैठा रे इंसान

तुझको क्या मालूम है क्या क्या, मुस्तक़बिल की झोली में
तू तो बस बहता चल, रंगा जुनून की होली में
मत कर फिक्र तू ज़र्रों की,
तुझे छूना है आसमान
क्यो बन क़ैदी अतीत का, बैठा रे इंसान

©arshad ali

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