आज गाँव से उनका गुज़र हुआ
जो खुद को हुक्मरां कहते है
किसी मक़सद के तहत होंगे यहाँ
अमूमन दीदार नहीं होता इनका
शायद गिनती करनी होगी मोहल्ले में
कितने हिन्दू, कितने मुस्लिम, कितने बाभन, कितने चमार ?
काफी मेहनत लगी "बाँटने" और "गिनने" में साहब को
कितना आसान होता अगर इंसानो की गिनती होती
पर इन्हे कौन समझाए ये तो "मेहनत के आदी " है /
©arshad ali