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Saturday 30 December 2017

ये जो तेरी आँखे है...

ये जो तेरी आँखे है,  किसी घटा से कम नहीं
जिस पहलू देखती हैं, दिलो पे तीर बरसते हैं

ये जो तेरी आँखे है, किसी नज़्म से कम नहीं
जिन्हें  पढ़ने  को  तमाम  शायर तरसते है

ये जो तेरी आँखे है, किसी शाम से कम नहीं
जिनकी आमद पर  कितनो के रोज़े खुलते है

ये जो तेरी आँखे है, किसी इत्र से कम नहीं
जिस  राह  गुज़रते  है  ख़ुश्बू  बिखेरते   है 

ये जो तेरी आँखे है, किसी ख़्वाब से कम नहीं
जिसे  देखने  को  तमाम  शहर  सोते  है

ये जो तेरी आँखे है, क्या कहु इनको ?
हर सू यहीं है , सब कुछ यहीं   है 
इनके बिना जाम फ़ीकी, इनके बिना शाम फ़ीकी
इनके बिना दिन फीके, इनके बिना रात फ़ीकी
सर्दी की धूप फ़ीकी, गर्मी  की छाँव फ़ीकी      
इनके बिना मेहफ़िल सूनी, इनके बिना हर बात फ़ीकी  

ये जो तेरी आँखे हैं, क्या कहु इनको....
 
©arshad ali


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